Puran Janjati पुरान जनजाति की सम्पूर्ण जानकारी ।
पुरान जनजाति
पुरान जनजाति को झरखण्ड की 33 वी जनजाति के रूप में 8 अप्रैल 2022 को भारत के गजट में अधिसूचित किया गया है।
इस प्रस्ताव के लागू होने के बाद राज्य में जनजातीय समुदायों की संख्या बढ़कर 33 हो गई है।
पुरान समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग अविभाजित बिहार से की जा रही थी।
1993 ई. में जनजातीय शोध संस्थान ने तथा 2014 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इसे अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की अनुशंसा की थी।
जनजाति शोध संस्थान के अनुसार इस जनजाति के अधिकांश लोग निरक्षर हैं तथा इनके पास भूमि का अभाव है।
जनजातियों को परिभाषित करने के मानदंड पर विचार करने हेतु गठित लोकूर समिति 1965 ई. दुवारा निर्धारित मानदंडों को यह जनजाति पूरी करती है।
जैसे इस जनजाति की सांस्कृतिक विशेषताऐं अलग है तथा इनके संस्कार व अनुष्ठान , वधु मूल्य के रिवाज ,धार्मिक
प्रधान , लोक देवता ,शासन ब्यवस्था ,टोटमवाद ,बहिजातिये विवाह समूह आदि समन्धित विशेषताओ में आदिम लक्षण दिखाई पड़ते है।
इस जनजाति का सबंध प्रोटो -ऑस्टेलायड प्रजाति समूह से है।
समाज एवं संस्कृति
पुरान समुदाय के लोग बहुजातीय गांवों में अन्य जातीय व जनजाति समुदायो के साथ रहते हैं तथा ये गांव के अन्य जातीय समूहों के साथ जाजमानी सबंध रखते हैं।
पुरान समुदाय के लोग बोलचाल की भाषा के रूप में पुरान बोली का प्रयोग करते हैं जो उड़िया ,हिंदी तथा पंचपरगनिया का मिश्रण है।
इस समुदाय के लोगो दुवारा बोलचाल हेतु हिंदी, पंचपरगनिया तथा मुंडारी भाषा का प्रयोग भी करते है।
इस जनजाति में कुल 13 गोत्र पाये जाते हैं जिसे किली कहा जाता है।
यह जनजाति समुदाय बहिविवाह है तथा इनमें सगोत्रीय विवाह वर्जित है।
इस जनजाति में वधू मूल्य को चलाऊ कहा जाता है।
इस जनजाति में विभिन्न विवाह प्रचलित है जैसे- क्रय विवाह (बाहाघर) , अपहरण विवाह(सिंदूर घाशा) ,सहपलायन विवाह (घिनीपाला) ,हठ विवाह (दुकू पासा) , विधवा विवाह (सांगाघर)
इस जनजाति की जातीय पंचायत को पूरान सभा कहा जाता है जिसका प्रमुख प्रधान या महालदार कहलाता है।
पुरान जनजाति आर्थिक ब्यवस्था
इस जनजाति का प्रमुख पेशा कृषि कार्य है।
इस जनजाति के लोग धनुर्विद्या में निपुण होते हैं।
कई अन्य जनजाति की भांति इस जनजाति का भी प्रमुख पेय हड़िया है।
पुरान जनजाति धार्मिक ब्यवस्था
इस समुदाय के धार्मिक प्रधान को पाहन या देउरी कहा जाता है, जो इस समुदाय में जन्म ,विवाह व मृत्यु जैसे संस्कार व अनुष्ठान को संपादित करता है।
इस जनजाति में विभिन्न संस्कारो हेतु हिन्दू ब्राह्मण की सहायता भी ली जाती है।
इस जनजाति के प्रमुख देवता धरम देवता तथा प्रमुख देवी बासुकी माता हैं।